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Bhagavad Gita Chapter 9

भगवद्गीता का नवम अध्याय, जिसे “राजविद्या राजगुह्य योग” कहा जाता है, भगवद्गीता के 18 अध्यायों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्याय है।

SHREE KRISHNA AND ARJUN

परिचय:

भगवद्गीता का नवम अध्याय, जिसे “राजविद्या राजगुह्य योग” कहा जाता है, भगवद्गीता के 18 अध्यायों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्याय है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को सर्वोच्च ज्ञान और रहस्य का उपदेश देते हैं, जो भक्ति योग के माध्यम से आत्मा की मुक्ति और परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

राजविद्या और राजगुह्य का अर्थ:

“राजविद्या” का अर्थ है “सर्वोच्च ज्ञान” और “राजगुह्य” का अर्थ है “सर्वोच्च रहस्य”। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि यह ज्ञान और रहस्य इतना पवित्र और मूल्यवान है कि इसे जानने से व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो सकता है।

भगवान की सर्वव्यापकता:

श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि वे समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त हैं, लेकिन फिर भी वे इन सबसे परे हैं। वे कहते हैं कि सभी जीव उनके भीतर हैं, लेकिन वे किसी के भी भीतर नहीं हैं। यह अद्वैत और द्वैत के सिद्धांतों का समन्वय प्रस्तुत करता है, जहाँ भगवान सर्वत्र हैं, फिर भी वे स्वतंत्र और निरपेक्ष हैं।

BHAGAVAD GITA CHAPTER 9

प्रकृति और सृष्टि का चक्र:

भगवान बताते हैं कि सम्पूर्ण सृष्टि उनकी प्रकृति के अधीन है। वे सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार के कारण हैं। सभी जीव उनके अधीन हैं, लेकिन वे किसी पर भी निर्भर नहीं हैं।

भक्ति का महत्व:

इस अध्याय में भगवान भक्ति के महत्व को विशेष रूप से रेखांकित करते हैं। वे कहते हैं कि जो व्यक्ति प्रेम और श्रद्धा से उन्हें भजता है, वे उसे स्वीकार करते हैं, चाहे वह किसी भी जाति, लिंग या वर्ग का हो। वे यह भी कहते हैं कि एक पत्ता, फूल, फल या जल भी यदि प्रेमपूर्वक अर्पित किया जाए, तो वे उसे स्वीकार करते हैं।

कर्म और निष्काम भाव:

भगवान कहते हैं कि सभी कर्म उन्हें अर्पित करने चाहिए और फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। इस प्रकार का निष्काम कर्म व्यक्ति को बंधनों से मुक्त करता है और उसे मोक्ष की ओर ले जाता है।

समान दृष्टि:

भगवान यह भी बताते हैं कि वे सभी जीवों के प्रति समान दृष्टि रखते हैं। जो व्यक्ति उन्हें भजता है, वह उनका प्रिय होता है, चाहे उसका अतीत कैसा भी रहा हो। वे कहते हैं कि एक पापी भी यदि सच्चे मन से उन्हें भजता है, तो वह भी शीघ्र ही धर्मात्मा बन जाता है।

निष्कर्ष:

नवम अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण भक्ति, कर्म, ज्ञान और आत्मा के रहस्यों को सरल और स्पष्ट रूप से समझाते हैं। वे बताते हैं कि प्रेम, श्रद्धा और समर्पण के माध्यम से कोई भी व्यक्ति उन्हें प्राप्त कर सकता है और मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। यह अध्याय भगवद्गीता के हृदय के समान है, जो आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग दिखाता है।

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