भगवद गीता के आठवें अध्याय “अक्षर ब्रह्म योग” का यह विस्तृत हिंदी विश्लेषण बताएगा मृत्यु के समय ईश्वर स्मरण की शक्ति, आत्मा की गति, और मोक्ष का शाश्वत मार्ग। जानिए अध्यात्म और भक्ति का सच्चा अर्थ।
परिचय:
भगवद गीता का आठवां अध्याय “अक्षर ब्रह्म योग” के नाम से जाना जाता है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर दिए हैं, जो आत्मा, ब्रह्म, मृत्यु के समय स्मरण, परमगति, और मोक्ष के विषय से संबंधित हैं। यह अध्याय मानव जीवन की चरम प्राप्ति – मोक्ष – की राह को स्पष्ट करता है।

सारांश (अक्षर ब्रह्म योग का तात्पर्य):
इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन के सात प्रश्नों का उत्तर दिया है:
- ब्रह्म क्या है?
- अध्यात्म क्या है?
- कर्म क्या है?
- अधिभूत क्या है?
- अधिदैव क्या है?
- अधियज्ञ कौन है और कहाँ स्थित है?
- मरणकाल में परमात्मा का स्मरण कैसे किया जाए?
श्रीकृष्ण इन प्रश्नों के उत्तरों के माध्यम से बताते हैं कि जीवन का अंतिम उद्देश्य केवल भौतिक संसार में उलझना नहीं है, बल्कि ब्रह्म को जानकर मोक्ष की प्राप्ति करना है।
प्रमुख श्लोक और उनके भावार्थ
श्लोक 1-2:
अर्जुन भगवान से प्रश्न करते हैं – “हे पुरुषोत्तम! ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ क्या हैं? और यह शरीर में स्थित अधियज्ञ कौन है?”
श्लोक 3-4:
श्रीकृष्ण उत्तर देते हैं:
- ब्रह्म – अविनाशी परम तत्व है (परमात्मा)।
- अध्यात्म – आत्मा का स्वरूप।
- कर्म – वह क्रिया जिससे जीव की उत्पत्ति होती है।
- अधिभूत – नाशवान पदार्थ (स्थूल जगत)।
- अधिदैव – देवता या ब्रह्माण्ड की सत्ता।
- अधियज्ञ – स्वयं भगवान हैं जो शरीर में रहते हुए समस्त यज्ञों के अधिकारी हैं।
मृत्यु के समय स्मरण का महत्व
श्लोक 5:
“जो मनुष्य मरण के समय मुझे स्मरण करता हुआ शरीर त्यागता है, वह मेरी प्राप्ति करता है।”
यह श्लोक बताता है कि मृत्यु के समय किसे स्मरण किया गया, वही जीव की अगली गति तय करता है।
श्लोक 6:
“जिसका जैसा अन्तःकालिक भाव होता है, उसी के अनुसार उसकी गति होती है।”
इसका अर्थ है कि यदि मृत्यु के समय व्यक्ति ईश्वर का स्मरण करता है, तो वह ईश्वर को प्राप्त करता है। यदि सांसारिक विषयों में रमता है, तो फिर पुनर्जन्म की ओर लौटता है।
भक्ति योग का महत्व
श्लोक 7:
“अर्जुन! तुम निरंतर मेरा स्मरण करते हुए युद्ध करो। इस प्रकार मन और बुद्धि को मुझमें लगा देने पर तुम मुझे ही प्राप्त करोगे।”
यहाँ कर्म और भक्ति का सामंजस्य बताया गया है। संसारिक कार्य करते हुए भी मन को ईश्वर में लगाकर मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
ब्रह्म प्राप्ति का मार्ग
श्लोक 9-10:
जो व्यक्ति योगबल से मन को नियंत्रित कर, मृत्यु के समय ब्रह्म का ध्यान करता है, वह परमगति को प्राप्त करता है।
प्राण त्याग की विधि:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि योगी मृत्यु के समय प्राण को भ्रूमध्य में एकाग्र करता है और ओम् का उच्चारण करता है। ऐसा साधक परमपद को प्राप्त करता है।
दो मार्ग – शुभ और अशुभ
श्लोक 24-26:
यहाँ भगवान दो मार्गों की चर्चा करते हैं:
- अर्चि मार्ग (शुभ मार्ग):
– इसमें मृत्यु के समय व्यक्ति अग्नि, दिन के समय, शुक्ल पक्ष, उत्तरायण काल में शरीर त्याग करता है।
– इससे आत्मा ब्रह्मलोक तक पहुँचती है और फिर मोक्ष प्राप्त होता है।
– यह मार्ग ईश्वर के ज्ञानी भक्तों का है। - धूम मार्ग (अशुभ मार्ग):
– इसमें मृत्यु रात्रि के समय, कृष्ण पक्ष, दक्षिणायण काल में होती है।
– इससे आत्मा पुनः जन्म लेती है।
– यह पथ कर्म के अनुरूप फल देता है।

भगवत्प्राप्ति के साधन
श्रीकृष्ण कहते हैं कि:
- जो भक्त न तो शुभ मार्ग का मोह करता है, न अशुभ मार्ग से डरता है।
- जो केवल भगवद भक्ति में लीन होता है, वह इन दोनों मार्गों से परे जाकर सीधे ब्रह्म को प्राप्त करता है।
श्लोक 28:
“जो भक्त वेदों के यज्ञ, तप, दान, और अन्य पुण्यकर्म करते हैं, उन सबसे बढ़कर है वह भक्त जो केवल मेरा ध्यान करता है।”
यह श्लोक स्पष्ट करता है कि भक्ति मार्ग सर्वोपरि है।
अध्याय 8 का आध्यात्मिक संदेश
- मृत्यु के समय की तैयारी अभी से करें:
हम जैसा जीवन जिएँगे, वैसी ही हमारी मृत्यु होगी। मृत्यु के समय परमात्मा का स्मरण तभी संभव है जब जीवन भर अभ्यास हो। - ओम् का महत्व:
ओम् केवल ध्वनि नहीं है, यह परम तत्व का प्रतीक है। इसके उच्चारण से मन को ईश्वर से जोड़ा जा सकता है। - योग और ध्यान:
नियमित ध्यान, योग और संयम से आत्मा ब्रह्म की ओर अग्रसर होती है। - निरंतर स्मरण:
दिन-रात भगवान का स्मरण करते हुए जीवन जीना ही सच्ची साधना है। - भक्ति श्रेष्ठ है:
यज्ञ, तप और दान भी तभी फलदायी होते हैं जब वे भक्ति से जुड़े हों।
व्यावहारिक दृष्टिकोण से अध्याय 8 का महत्व
- मृत्यु का भय दूर करता है:
श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो भक्त उनका स्मरण करते हैं, वे मृत्यु के भय से मुक्त रहते हैं। - जीवन को दिव्यता की ओर मोड़ता है:
यह अध्याय बताता है कि कैसे हम भौतिक जीवन में रहते हुए भी आध्यात्मिक उन्नति कर सकते हैं। - ईश्वर का साक्षात अनुभव:
जब मन एकाग्र होकर ओम् और ईश्वर में लीन होता है, तो जीव ब्रह्म को प्राप्त करता है।
निष्कर्ष
भगवद गीता का आठवाँ अध्याय – अक्षर ब्रह्म योग, आत्मा की परम यात्रा का मार्गदर्शक है। यह केवल मृत्यु के रहस्य को नहीं खोलता, बल्कि यह भी बताता है कि जीवन में कैसे जिएं ताकि मृत्यु भी कल्याणकारी बने। श्रीकृष्ण हमें यह सिखाते हैं कि संसारिक कर्मों के मध्य भी हम ईश्वर को पा सकते हैं – शर्त यह है कि हमारा चित्त हर समय उसी परमात्मा की ओर केंद्रित हो।
मुख्य संदेश:
“मरण के समय जो मेरा स्मरण करता है, वह मुझे ही प्राप्त करता है।”
यह वाक्य हमें जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य याद दिलाता है – ईश्वर प्राप्ति और मोक्ष।
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