“भगवान श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन परिचय – जन्म से लेकर वनवास, रावण वध, रामराज्य स्थापना और वैकुण्ठ गमन तक की विस्तृत और प्रेरणादायक कथा। पढ़ें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की सम्पूर्ण जीवनी हिंदी में।”
- भगवान श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन परिचय
- भूमिका:
- जन्म और बाल्यकाल:
- विश्वामित्र के साथ वनगमन और ताड़का वध:
- सीता-स्वयंवर और विवाह:
- राज्याभिषेक की तैयारी और वनवास:
- वनवास का समय:
- सीता हरण और राम का वियोग:
- लंका की यात्रा और युद्ध:
- सीता की अग्नि परीक्षा:
- अयोध्या वापसी और राज्याभिषेक:
- रामराज्य:
- सीता का परित्याग:
- लव-कुश और पुनर्मिलन:
- श्रीराम का लोकगमन:
- निष्कर्ष:
भगवान श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन परिचय
भूमिका:
भगवान श्रीराम हिन्दू धर्म के अत्यंत पूजनीय देवता हैं। उन्हें भगवान विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता है। उनका जीवन मर्यादा, धर्म, त्याग, और आदर्श का प्रतीक है। उनका चरित्र इतना महान है कि वह ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहे जाते हैं। श्रीराम की कथा मुख्य रूप से महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में वर्णित है, जिसे बाद में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के रूप में अवधी भाषा में प्रस्तुत किया। इस कथा का प्रभाव भारत ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण दक्षिण एशिया के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन पर भी पड़ा है।
जन्म और बाल्यकाल:
भगवान श्रीराम का जन्म त्रेता युग में अयोध्या नगरी में हुआ था। उनके पिता महाराज दशरथ को तीन रानियाँ थीं: कौशल्या, कैकेयी, और सुमित्रा । राजा दशरथ संतान प्राप्ति की कामना से महर्षि ऋष्यश्रृंग के निर्देशन में ‘पुत्रकामेष्टि यज्ञ’ कराते हैं। यज्ञ के फलस्वरूप उन्हें एक दिव्य खीर प्राप्त होती है, जिसे वे अपनी तीन रानियों में बाँट देते हैं।

- कौशल्या के गर्भ से श्रीराम का जन्म होता है।
- कैकेयी से भरत,
- सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न।
श्रीराम का जन्म चैत्र मास की नवमी तिथि को हुआ था, जिसे राम नवमी के रूप में मनाया जाता है।
बाल्यकाल में श्रीराम ने ब्रह्मचारी के रूप में गुरु वशिष्ठ से वेद-शास्त्र, धनुर्विद्या आदि की शिक्षा प्राप्त की। लक्ष्मण श्रीराम के अत्यंत प्रिय थे और सदैव उनके साथ रहते थे।
विश्वामित्र के साथ वनगमन और ताड़का वध:
एक दिन महर्षि विश्वामित्र अयोध्या आए और राजा दशरथ से श्रीराम और लक्ष्मण को अपने साथ राक्षसों के संहार के लिए माँगा। यद्यपि दशरथ पहले चिंतित हुए, पर गुरु वशिष्ठ की सलाह पर उन्होंने दोनों पुत्रों को विश्वामित्र के साथ भेजा।
इस यात्रा में:
- श्रीराम ने ताड़का नामक राक्षसी का वध किया,
- सुबाहु और मारीच को पराजित किया,
- और विश्वामित्र को यज्ञ संपन्न करने में सहायता दी।
सीता-स्वयंवर और विवाह:

इस अभियान के दौरान वे जनकपुरी (मिथिला) पहुँचे जहाँ राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के लिए स्वयंवर का आयोजन किया था। इस स्वयंवर की शर्त थी कि जो शिवजी का धनुष उठाकर उसे तोड़ेगा, वही सीता का वरण कर सकेगा।
श्रीराम ने:
- सहजता से शिवधनुष को उठाकर तोड़ा,
- और सीता से उनका विवाह हुआ।
इस अवसर पर लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का भी विवाह जनक की अन्य कन्याओं से हुआ।
राज्याभिषेक की तैयारी और वनवास:
अयोध्या लौटने पर महाराज दशरथ ने श्रीराम के राज्याभिषेक की योजना बनाई। परंतु कैकेयी को मंथरा नामक दासी ने भड़काया। कैकेयी ने राजा दशरथ से अपने दो वरदान माँगे:
- भरत को राजा बनाया जाए,
- श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास दिया जाए।
राजा दशरथ वचनबद्ध होकर विवश हो गए। श्रीराम ने पिता की आज्ञा को धर्म मानकर सहजता से वनवास स्वीकार कर लिया। सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ वन चले गए।

वनवास का समय:
वनवास के दौरान श्रीराम ने अनेक ऋषियों से भेंट की, असुरों का वध किया और धार्मिक संवाद किए। उन्होंने:
- दंडकारण्य, चित्रकूट, पंचवटी आदि में समय बिताया,
- अनेक राक्षसों को मारा,
- और धर्म की स्थापना में कार्य किया।
इसी अवधि में शूर्पणखा नामक राक्षसी ने श्रीराम से विवाह की इच्छा प्रकट की, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। क्रोधित होकर उसने सीता पर आक्रमण किया। लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी।
इसका परिणाम यह हुआ कि रावण ने बदला लेने के लिए मारीच के सहयोग से सीता का हरण किया।

सीता हरण और राम का वियोग:
रावण ने एक माया-मृग (मारीच) के रूप में सीता को भ्रमित किया। श्रीराम और लक्ष्मण उसके पीछे चले गए, और तभी रावण ने सीता का अपहरण किया और उन्हें लंका ले गया।
श्रीराम जब लौटे तो सीता को न पाकर अत्यंत दुखी हुए। वे सीता की खोज में अनेक स्थानों पर गए। इस दौरान उनकी भेंट:
- सुग्रीव (वानरराज) से हुई,
- हनुमान से उनकी मित्रता हुई,
- और बाली का वध कर उन्होंने सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाया।
लंका की यात्रा और युद्ध:

हनुमान जी ने सीता को अशोक वाटिका में देखा और उन्हें श्रीराम की अंगूठी दी। फिर वानर सेना के साथ श्रीराम ने समुद्र पर पुल (रामसेतु) बनाया और लंका पर चढ़ाई की।
इस युद्ध में:
- मेघनाद, कुम्भकर्ण, अतिकाय जैसे राक्षस मारे गए,
- विभीषण ने श्रीराम का साथ दिया और उन्हें लंका का राजा बनाया गया,
- अंततः श्रीराम ने रावण का वध किया और धर्म की पुनः स्थापना की।
सीता की अग्नि परीक्षा:
रावण के वध के पश्चात श्रीराम ने सीता को अग्नि परीक्षा देने को कहा, जिससे यह सिद्ध हो सके कि रावण ने उनका स्पर्श नहीं किया। सीता ने अग्नि में प्रवेश कर स्वयं की पवित्रता प्रमाणित की।
अयोध्या वापसी और राज्याभिषेक:
14 वर्षों का वनवास पूर्ण कर श्रीराम, सीता और लक्ष्मण पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे। उनका भव्य स्वागत हुआ और उनका राज्याभिषेक हुआ। इसी दिन को दीपावली के रूप में मनाया जाता है।
रामराज्य:
श्रीराम के राज्य में सब सुखी थे, धर्म की स्थापना हुई, कोई दुखी नहीं था। इसे रामराज्य कहा जाता है — जहाँ न्याय, शांति, समृद्धि और धर्म का पालन होता है।
सीता का परित्याग:
हालाँकि सीता ने अग्नि परीक्षा दी थी, पर जनता में कुछ लोगों के मन में संशय रहा। धर्म और मर्यादा के पालन हेतु श्रीराम ने सीता को वन भेज दिया। वहाँ उन्होंने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में निवास किया और लव-कुश नामक दो पुत्रों को जन्म दिया।
लव-कुश और पुनर्मिलन:
बड़े होकर लव-कुश ने श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का अश्व पकड़ा। उन्होंने श्रीराम की सेना को पराजित किया। बाद में जब सत्य प्रकट हुआ, तब सीता को सभा में बुलाया गया।
वहाँ उन्होंने पृथ्वी माता से प्रार्थना की कि यदि वे सच्ची और पवित्र हैं तो पृथ्वी उन्हें अपने में समा ले। सीता पृथ्वी में समा गईं। श्रीराम अत्यंत दुःखी हुए।
श्रीराम का लोकगमन:
कुछ समय पश्चात श्रीराम ने सरयू नदी के तट पर स्नान कर जल में प्रवेश किया और अपने दिव्य रूप में वैकुण्ठधाम को लौट गए। यह राम–राज्य का समापन और धरती पर उनके अवतार की पूर्णता थी।

निष्कर्ष:
भगवान श्रीराम का जीवन एक आदर्श जीवन है। वे एक आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श भाई, आदर्श राजा, और सबसे बढ़कर एक मर्यादा पुरुषोत्तम थे। उनके जीवन की घटनाएँ आज भी लोगों को धर्म, कर्तव्य और नैतिकता की प्रेरणा देती हैं।
उनकी कथा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का भी आधार है। रामायण केवल एक कथा नहीं, बल्कि एक जीवन जीने की कला है।
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